शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

जिंदगी नै के कहूँ / Zindagi Nai Ke Kahun

जिंदगी नै के कहूँ एक रेल सै!
आना-जाना भीड़ धक्कम-पेल सै!!
कोए भीड़ म्हें टुल्ले, को सोवै चैन तै,
को-को पसेंजर कोए-कोए मेल सै!
को एक्सप्रेस रूकती न को रुक-रुक चलै,
को लिकड़गी आग्गे को गेल्लम-गेल सै!
ईश्क होणा टकराणा दो गाड़ियाँ का,
ब्याह स्टेशन मास्टर की जेल सै!
राजनीती का टेसण जित भी आज्या सै,
झूठ मक्कारी की लाग्गी सेल सै!
दो घड़ी सां बीमार चैन-सी खिंचगी,
न तो खानै म्हें ब्रेक फ़ैल सै!
मौत कै टेसण पै उतर ले 'नमन'
जिंदगी का बस यो हे तो खेल सै!!
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(हरियाणवी कविता-संग्रह "प्रथम-प्रेम-पाती" से)

2 टिप्‍पणियां:

Dahiya ने कहा…

Bahut Khob Naman Ji......
Nice One....

Ghazalguru.blogspot.com ने कहा…

धन्यवाद, दहिया जी!

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