सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

आई दिवाळी / Aayi Diwali

आई दिवाळी चसे दीवड़े, हे सखी रामराज आया री
आई दिवाळी चसे दीवड़े, हे सखी रामराज आया री

दिवाळी का चा था
सबकै मन उत्साह था
एक-दूसरे नै मिल के सारे बधाई दे रे थे
कोए ग्रीटिंग बांटें थे अर कोए मिठाई दे रे थे
घर लिपे-पुते चमक रे थे
नए सूट गात पै दमक रे थे
बजार जाण की त्यारी थी
पटाखे ल्याण की बारी थी
बजार सुरग से लाग्गैं थे, हर-एक हाट सज री थी
किते स्वर थे मंत्रोच्चारण के तो किते बांसळी बज री थी
चसे दीव्याँ कै चान्दन्याँ म्हें मावस म्हें उजासी छा री थी
मिला सुर तै सुर अर गळ तै गळ सखी गीत यो गा री थी-

आई दिवाळी चसे दीवड़े, हे सखी रामराज आया री
आई दिवाळी चसे दीवड़े हे सखी रामराज आया री

बजार कै मोड़ पै सड़क का कूणा
टुट्टी-सी खाट, पाट्या-सा बिछूणा
थोड़े-सी मोमबत्ती, थोड़ी-सी फूलझड़ी
थोड़ी-सी टिकिया, थोड़ी पटाख्याँ की लड़ी
लेल्यो पटाखे सस्ते ले ल्यो, एक बाळक बोल लगा ऱ्या था
आंदे-जांदे किस्से का पर उसपै ध्यान ना जा ऱ्या था
वो भी मन म्हें दिवाळी का उत्साह ले के आया था
मिठाई नहीं, माँ की दुवाई का चा ले के आया था

माँ घणी बीमार थी
चालण- फिरण तै लाचार थी
बाब्बू उसका खा लिया था दारू-खोरी नै
बड़ा भाई निगळ लिया था सेठ की तिजोरी नै
कासण-भारी करके नै माँ थोड़ा-घणा कमाया करती
आप भुक्खी रह के नै भी उसनै टूक खुवाया करती

पर कोढ़ म्हें खाज की तरियां या किस्मत की मार हो सै
इसकै आग्गे आदमी का हर सुपना लाचार हो सै
उस दिन खुद उसकै मन म्हें या सबतै बड़ी गरीबी लाग्गी
भूख-प्यास कै कारण तै उसकी माँ लकवै म्हें आगी
घर की सारी जिम्मेदारी उसकै कांधे आ ली थी
बारह साल कै छोटे सै उस सर पै कुण्डी ठा ली थी

किस्मत नै जो भी कर दी थी, उसका कती मलाल नहीं था
माँ का साया सर पै था, गरीबी का ख्याल नहीं था
गरीबी म्हें धंसी आख्याँ तै कोए गाहक टोह ऱ्या था
उधार लिए पटाख्याँ नै वो देख-देख के रो ऱ्या था
इतने म्हें ए लिकड़ गळी तै सोहद्यां की आगी टोळी
एक अळबाद्दी नै आग्गे बढ़ भर ळी पटाख्याँ की झोळी
उसकै पीसे मांगण पै ए इतणी बड़ी सज़ा देई
गेर पटाख्याँ कै उप्पर फेर उनम्हें सींख लगा देई

पटाख्याँ की धडाम-धडाम नै, तोड़ देई ख़ामोशी थी
उस गरीब के सुपन्या उप्पर ल्या देई बेहोशी थी
दो मिनट म्हें सारे पटाक्खे बाज-बूज कै थम गे
उस गरीब कै लहू के छींटे सड़क कै उप्पर जम गे
फेर, किसे नै ठाया कोन्या
अस्पताळ पहुंचाया कोन्या

जिद वो होश म्हें आवण लाग्या
तो, न्यू ए बुदबुदावण लाग्या-
बरसां तै बढ़ री सै माँ, या आस नहीं टूटण दयूंगा
तेरै इलाज तै पहल्यां माँ मेरी साँस नहीं टूटण दयूंगा
उट्ठण की हिम्मत कोन्या थी, हट के बेहोसी छा री थी
दूर गळी कै एक कोणे पै सखी गीत यो गा री थी

आई दिवाळी चसे दीवड़े, हे सखी रामराज आया री
आई दिवाळी चसे दीवड़े, हे सखी रामराज आया री

के यो हे रामराज सै?
जित डुब्या होया भविष्य अर खोया होया आज सै

जे यो हे रामराज सै तो लानत सै इस राज नै
भीम सुभाष टैगोर कै भटकै होयै समाज नै
समाजवाद की छात्ती म्हें बेट्ठ्या होया भाल्ला
राजनीती की मक्कारी, भ्रष्टाचार का बोलबाल्ला
इस तै ज्यादा मजबूरी के होगी इस जहान म्हें
माँ छाती का खून बेच दे दो शेर धान म्हें
जिस दिन यें बुराई म्हारै भारत तै मिट ज्यावें गी
भारत की जनता उस दिन साच्ची मन तै गावै गी-

आई दिवाळी चसे दीवड़े, हे सखी रामराज आया री!
आई दिवाळी चसे दीवड़े, हे सखी रामराज आया री!!
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(हरियाणवी कविता संग्रह 'मोर के चंदे' से उद्धृत)