*-*
मेरी घर आळी गाम जा री थी
मन्ने चैन की साँस आ री थी
दो रोट्टी पोई अर खा कै सो ग्या
नई-नई पड़ोसन कै सुपने म्हें खो ग्या
फेर सुपन्या का के भरोसा, यो तो जंजाळ हो सै
दो घड़ी की ख़ुशी, च्यार घड़ी का काळ हो सै
सुपने म्हें ए आँख खुली, मैं घणा थर्राग्या
जिद मन्ने देक्ख्या - स्याम्हीं यमराज आग्या
सिर पै सिंगां आल़ा मुकुट, गेल्यां काल़ा झोटा था
मेरे कत्ति समझ म्हें आगी, मेरे सासाँ का टोट्टा था
मैं समझ ग्या अक मेरी ज्यान का खो आग्या
अर मेरे म्हें फेर जीण का मोह आग्या
मन्ने सोच्ची- रै मिट्ठू मिट्ठा बण के बोल ना तो मर ज्यागा
इसकै एक झटके म्हें सुरग कान्ही पैर कर ज्यागा
मैं बोल्या, यमराज जी के करो सो
मेरे गात म्हें के भरो सो?
वो बोल्या- चुप पड्या रह
तेरी सांसां नै बाढ़ ल्यूं
फेर बतलावाँ गे
पहल्यां तेरी ज्यान काढ ल्यूं
घर आळी होत्ती तो उसनै आग्गे कर देत्ता
मेरी ज्यान तो या हे सै, हाँ भर देत्ता
क्यूँ हाँसो सो कई बै अपणापण दिखाणा ए पडे सै
गरज म्हें गधा भी बाप बनाणा ए पडे सै
फेर ईब के चारा था, वा तो जा रही पीहर थी
मेरी कढी-सी रंधे थी, वा खा रही हलवे-खीर थी
ईब तो मन्ने ए मुकाबला करणा था
मुकाबला के; सिद्धी बात सै- मरणा था
मन्ने दिमाग की चाब्बी घुमाई
अर मेरे एक बात याद आई
अक हर आदमी एक ठीक टेम पै मरया करे सै
वो टेम लिकड्या पाच्छै घणा ए जीया करे सै
मेरे भित्तर का कवी बोल्या जबान कि कलम चला ले
वा घड़ी लिकड़ण तक इसनै बत्तां म्हें उळझाले
मैं बोल्या- छोडो नै यमराज जी
के सांसां म्हें ए ध्यान सै
पहलम न्यू तो सुना दो
थारा के ज्ञान सै
वो बोल्या ज्ञान-ग्यून तो के सै
दिनां कै धक्के ला ऱ्या सूँ
सांस ल्याण अर ले ज्याण आलै
डाकिये की ड्यूटी निभा ऱ्या सूँ
मेरे साथ के लाग्गे चपड़ासी
आज अफसर हो रे सै
ये मेरे फुट्टे करम
बेरा न कित सो रे सै
सदियाँ गुजरगी कदे या न सुणी
अक परमोसन होग्या
इसी नौकरी लाग्गी
मेरा तो शोषण होग्या
चलो छोडो यमराज जी,
सुरग कि राजनीती का के दौर सै
इंद्र ए जित्तैगा अक थारा जोर सै?
वो बोल्या- मैं के जित्तुं गा
मन्ने तो फारम ए न भरया
धोल़े लात्त्याँ का भाव देख कै
जी ए न करया
अर रही बात जित्तण की
तो वो ए जित्त्य पावैगा
जो सरे देव्त्यां कै घरां
दारू पहुंचावैगा
फेर चाल्लैगा बैंच तलै का लेणा अर देणा
दूसरे के दुखाँ म्हें झुट्ठी आँख भेणा
फेर बिछेगी वोट तोड़ण की
शतरंज कि बिसात
जिस म्हें प्यादे बनेंगे
धरम, भाषा, जात अर पात
फेर बदले जंगे ढोल
जिद बेर लाग्गैगा
किस कान्ही सै झोल
मैं बोल्या- छोडो यमराज जी न्यू क्युक्कर तिरो सो
वो चित्रगुप्त कित सै किम्मे ऐकले ए फिरो सो
वो बोल्या रै न पुच्छे या हे बात
वो तो मेरी यम्मी नै ल़े उड्या पाछली रात
इतनै म्हें उसकी आंख म्हें आंसू की धार आगी
अर मेरै उसकी दुखती रग थ्यागी
मैं बोल्या यमराज जी बीरबानियां का के ठिकाणा सै
आजकाल इस्सा ए जमाना सै
इब मेरली नै देख ल्यो वा के सुद्धी सै
शिकल की सिद्धी फेर अक्ल की मुद्धी सै
इब थारे तै के ल्ह्को सै वा रोज बेल्लण ठावे सै
दिन म्हें गधे की तरियां कमाऊं रात नै मुर्गा बनावै सै
न्यू सोच ल्यो अपन तो भाई-भाई सां
एक ए सुस्सरै के दो जमाई सां
इतनी देर म्हें वो मेरी बत्तां नै भांप ग्या
अर उसका मोट्टा हाथ मेरी घेट्टी नाप ग्या
मने अरदास करी-
मन्ने मर कै के पाओगे
मेरी दो हाड्डी सें
इनका के वज्रधनुष बनाओगे
फेर मेरी आंखां आगै को
घूम ग्या दधीची
वो वृतासुर का आतंक
वा पाप की बगिच्ची
अर गेलयाँ घूम ग्या भारत म्हें फैल्या भ्रष्टाचार
महंगाई, बेरोजगारी, राजनीती की मार
आज गळी-गळी म्हें दानवता का नंगा नाच सै
खुद भाई के हात्था तै भाणा नै आंच सै
यो बेरोजगारी का दानव के छोट्टा सै
या राजनीती तो बे-पैंदी का लोट्टा सै
भ्रष्टाचार मिटाऊंगा न्यू कह के जो भी आवै सै
फेर इस्से दलदल म्हें धंस ज्यावे सै
इस नशाखोरी की भी गहरी जड़ गड री सै
घरां बाळक तरसैं दूध नै महफ़िल म्हें दारु उड़ री सै
दहेज़ सै, भ्रूण-हत्या सै; जात-पात सै, धर्म सै
माँ-बाप की लिहाज नहीं के या ए शर्म सै?
आज भी अशिक्षा सै, शोषण सै, बाल-मजदूरी सै
घर-घर म्हें सें वृतासुर धधिची एक जरूरी सै
एक-एक बात मेरी आंखां म्हें तुल गी
फेर के करता इतनै म्हें मेरी आँख खुल गी
जिद बेर लाग्या अक या तो सुपने की बात थी
यमराज कित्ते न था, मैं था, काळी रात थी
मेरे क्यूँ न काढ़े प्राण इसे बात पै रोऊँ सूं
धक्के तै आँख मीच यमराज नै टोहूँ सूं
अक हे यमराज जी मेरा सुपा साच्ची कर दे
मेरी हाड्डी बेसक लेले, देश नै खुशियाँ तै भर दे
मैं तो ठंडी सांस भरूँ सूं
यमराज तै यो ए निवेदन करूँ सूं-
मेरी एक-एक हाड्डी ले ले
इनका वज्र-धनुष बणा दे
अर इस भ्रष्टाचार कै
वृत्तासुर नै मिटा दे!
अर इस भ्रष्टाचार कै
वृत्तासुर नै मिटा दे!
मेरी घर आळी गाम जा री थी
मन्ने चैन की साँस आ री थी
दो रोट्टी पोई अर खा कै सो ग्या
नई-नई पड़ोसन कै सुपने म्हें खो ग्या
फेर सुपन्या का के भरोसा, यो तो जंजाळ हो सै
दो घड़ी की ख़ुशी, च्यार घड़ी का काळ हो सै
सुपने म्हें ए आँख खुली, मैं घणा थर्राग्या
जिद मन्ने देक्ख्या - स्याम्हीं यमराज आग्या
सिर पै सिंगां आल़ा मुकुट, गेल्यां काल़ा झोटा था
मेरे कत्ति समझ म्हें आगी, मेरे सासाँ का टोट्टा था
मैं समझ ग्या अक मेरी ज्यान का खो आग्या
अर मेरे म्हें फेर जीण का मोह आग्या
मन्ने सोच्ची- रै मिट्ठू मिट्ठा बण के बोल ना तो मर ज्यागा
इसकै एक झटके म्हें सुरग कान्ही पैर कर ज्यागा
मैं बोल्या, यमराज जी के करो सो
मेरे गात म्हें के भरो सो?
वो बोल्या- चुप पड्या रह
तेरी सांसां नै बाढ़ ल्यूं
फेर बतलावाँ गे
पहल्यां तेरी ज्यान काढ ल्यूं
घर आळी होत्ती तो उसनै आग्गे कर देत्ता
मेरी ज्यान तो या हे सै, हाँ भर देत्ता
क्यूँ हाँसो सो कई बै अपणापण दिखाणा ए पडे सै
गरज म्हें गधा भी बाप बनाणा ए पडे सै
फेर ईब के चारा था, वा तो जा रही पीहर थी
मेरी कढी-सी रंधे थी, वा खा रही हलवे-खीर थी
ईब तो मन्ने ए मुकाबला करणा था
मुकाबला के; सिद्धी बात सै- मरणा था
मन्ने दिमाग की चाब्बी घुमाई
अर मेरे एक बात याद आई
अक हर आदमी एक ठीक टेम पै मरया करे सै
वो टेम लिकड्या पाच्छै घणा ए जीया करे सै
मेरे भित्तर का कवी बोल्या जबान कि कलम चला ले
वा घड़ी लिकड़ण तक इसनै बत्तां म्हें उळझाले
मैं बोल्या- छोडो नै यमराज जी
के सांसां म्हें ए ध्यान सै
पहलम न्यू तो सुना दो
थारा के ज्ञान सै
वो बोल्या ज्ञान-ग्यून तो के सै
दिनां कै धक्के ला ऱ्या सूँ
सांस ल्याण अर ले ज्याण आलै
डाकिये की ड्यूटी निभा ऱ्या सूँ
मेरे साथ के लाग्गे चपड़ासी
आज अफसर हो रे सै
ये मेरे फुट्टे करम
बेरा न कित सो रे सै
सदियाँ गुजरगी कदे या न सुणी
अक परमोसन होग्या
इसी नौकरी लाग्गी
मेरा तो शोषण होग्या
चलो छोडो यमराज जी,
सुरग कि राजनीती का के दौर सै
इंद्र ए जित्तैगा अक थारा जोर सै?
वो बोल्या- मैं के जित्तुं गा
मन्ने तो फारम ए न भरया
धोल़े लात्त्याँ का भाव देख कै
जी ए न करया
अर रही बात जित्तण की
तो वो ए जित्त्य पावैगा
जो सरे देव्त्यां कै घरां
दारू पहुंचावैगा
फेर चाल्लैगा बैंच तलै का लेणा अर देणा
दूसरे के दुखाँ म्हें झुट्ठी आँख भेणा
फेर बिछेगी वोट तोड़ण की
शतरंज कि बिसात
जिस म्हें प्यादे बनेंगे
धरम, भाषा, जात अर पात
फेर बदले जंगे ढोल
जिद बेर लाग्गैगा
किस कान्ही सै झोल
मैं बोल्या- छोडो यमराज जी न्यू क्युक्कर तिरो सो
वो चित्रगुप्त कित सै किम्मे ऐकले ए फिरो सो
वो बोल्या रै न पुच्छे या हे बात
वो तो मेरी यम्मी नै ल़े उड्या पाछली रात
इतनै म्हें उसकी आंख म्हें आंसू की धार आगी
अर मेरै उसकी दुखती रग थ्यागी
मैं बोल्या यमराज जी बीरबानियां का के ठिकाणा सै
आजकाल इस्सा ए जमाना सै
इब मेरली नै देख ल्यो वा के सुद्धी सै
शिकल की सिद्धी फेर अक्ल की मुद्धी सै
इब थारे तै के ल्ह्को सै वा रोज बेल्लण ठावे सै
दिन म्हें गधे की तरियां कमाऊं रात नै मुर्गा बनावै सै
न्यू सोच ल्यो अपन तो भाई-भाई सां
एक ए सुस्सरै के दो जमाई सां
इतनी देर म्हें वो मेरी बत्तां नै भांप ग्या
अर उसका मोट्टा हाथ मेरी घेट्टी नाप ग्या
मने अरदास करी-
मन्ने मर कै के पाओगे
मेरी दो हाड्डी सें
इनका के वज्रधनुष बनाओगे
फेर मेरी आंखां आगै को
घूम ग्या दधीची
वो वृतासुर का आतंक
वा पाप की बगिच्ची
अर गेलयाँ घूम ग्या भारत म्हें फैल्या भ्रष्टाचार
महंगाई, बेरोजगारी, राजनीती की मार
आज गळी-गळी म्हें दानवता का नंगा नाच सै
खुद भाई के हात्था तै भाणा नै आंच सै
यो बेरोजगारी का दानव के छोट्टा सै
या राजनीती तो बे-पैंदी का लोट्टा सै
भ्रष्टाचार मिटाऊंगा न्यू कह के जो भी आवै सै
फेर इस्से दलदल म्हें धंस ज्यावे सै
इस नशाखोरी की भी गहरी जड़ गड री सै
घरां बाळक तरसैं दूध नै महफ़िल म्हें दारु उड़ री सै
दहेज़ सै, भ्रूण-हत्या सै; जात-पात सै, धर्म सै
माँ-बाप की लिहाज नहीं के या ए शर्म सै?
आज भी अशिक्षा सै, शोषण सै, बाल-मजदूरी सै
घर-घर म्हें सें वृतासुर धधिची एक जरूरी सै
एक-एक बात मेरी आंखां म्हें तुल गी
फेर के करता इतनै म्हें मेरी आँख खुल गी
जिद बेर लाग्या अक या तो सुपने की बात थी
यमराज कित्ते न था, मैं था, काळी रात थी
मेरे क्यूँ न काढ़े प्राण इसे बात पै रोऊँ सूं
धक्के तै आँख मीच यमराज नै टोहूँ सूं
अक हे यमराज जी मेरा सुपा साच्ची कर दे
मेरी हाड्डी बेसक लेले, देश नै खुशियाँ तै भर दे
मैं तो ठंडी सांस भरूँ सूं
यमराज तै यो ए निवेदन करूँ सूं-
मेरी एक-एक हाड्डी ले ले
इनका वज्र-धनुष बणा दे
अर इस भ्रष्टाचार कै
वृत्तासुर नै मिटा दे!
अर इस भ्रष्टाचार कै
वृत्तासुर नै मिटा दे!
अर इस भ्रष्टाचार कै
वृत्तासुर नै मिटा दे!!
(हरियाणवी कविता-संग्रह "मोर के चंदे से")
वृत्तासुर नै मिटा दे!!
(हरियाणवी कविता-संग्रह "मोर के चंदे से")