इबकै इसी दिवाळी क्यूँ सै?
छात दीप तै खाल्ली क्यूँ सै??
न अम्बर आतीश गूंजता,
पट्टाख्यां की काल्ली क्यूँ सै?
...
एक भाई खात्तर भाई कै
दिल भित्तर कंगाल्ली क्यूँ सै?
काल़ा गात खून के छिट्टे,
रात इसी बदहाल्ली क्यूँ सै?
माँ नै बिन जाई आँख्यां म्हें
मौत की स्याही घाल्ली क्यूँ सै?
'नमन' रोज़ की घटना सै या
तेरे काळजै सल्ली क्यूँ सै??
('मोर के चंदे' हरियाणवी कविता-संग्रह से उद्धृत)